Dar Se Dar Nii Lgta
तुम्हें खोने का डर आज भी ज़िंदा है…
तुम मेरी पहली मोहब्बत थे…
वो एहसास, जो दिल में पहली बार खिला था।
आज भी याद है मुझे— कैसे तुम किसी और से बातें करने लगे थे,
और मैं टूटकर रह गई थी। झूठ नहीं कहूंगी…
उस वक़्त ऐसा लगा था जैसे दुनिया ही खत्म हो गई हो।
मैं रोती रही, खुद को ही इल्ज़ाम देती रही—
कि शायद मेरी ही गलती थी,
मैं ही तुम्हारे काबिल नहीं थी, मैं ही तुम्हें रोक न पाई।
फिर क़िस्मत ने अजीब खेल खेला—
मुझे तुमसे दोबारा मिला दिया। दिल ने कहा, “दूर रहो”,
पर मोहब्बत… वो तो फिर जीत गई। तुम लौट आए,
और मैं… फिर से तुम्हारे सामने बिखरने लगी।
लेकिन आज भी दिल में एक डर बैठा है—
एक पुराना, गहरा, न मिटने वाला डर। क्योंकि तुम वही हो,
जो एक बार मुझे छोड़कर किसी और की तरफ चले गए थे।
कैसे तुम्हारा दिल मान गया?
कैसे तुम्हारे हाथ ने किसी और का स्पर्श स्वीकार कर लिया?
सोचकर आज भी सांस भारी हो जाती है।
और अब… जब तुम मेरे पास हो,
मेरा दिल बार-बार यही पूछता है—कहीं फिर से…
तुम मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?कहीं फिर से…
तुम किसी और के नहीं हो जाओगे?
क्योंकि सच कहूं तो—तुम्हें खोने का डर, आज भी मुझमें ज़िंदा है।
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